News of Same Sex Marriage in India: जहां सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में साफ तौर पर समलैंगिक विवाह का विरोध किया जा चूका है वहीं समलैंगिक विवाह को लेकर कानूनी मान्यता पर सुप्रीम कोर्ट में आज यानी मंगलवार को सुनवाई होगी (Supreme Court hearing today on gay marriage in India). ऐसे में NCPCR ने एक हैरान कर देने वाला दावा किया है.
समलैंगिक विवाह पर सुनवाई (Supreme Court hearing today on gay marriage in India) से पहले करीब 6000 लोगों पर किए गए एक सर्वे की रिपोर्ट सामने आई है जिसके मुताबिक समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से LGBTQIA युवाओं में अवसाद, तनाव और आत्महत्या की घटनाएं कम होंगी.
बता दें कि यह सर्वे मनोवैज्ञानिक, शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों की एक टीम ने कुछ दिन पहले ही किया है और इसके जरिए भारत में इस बात को समझने की कोशिश की गई कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिलने से क्या असर होगा? इस सर्वे की रिपोर्ट तब सामने आई है जब सुप्रीम कोर्ट आज यानी मंगलवार को समलैंगिक विवाह से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई होनी है.
सर्वे की शुरुआती जानकारी में कहा गया है कि बहुत से लोग ऐसे हैं जो समलैंगिक विवाह को मान्यता मिलने का स्वागत करेंगे और इससे एलजीबीटी समुदायों के परिवारों और सदस्यों का मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होगा.
सर्वे के मुताबिक 87% लोगों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के सेक्शन 377 द्वारा होमोसेक्स को अपराध के दायरे से बाहर करने से ऐसे लोगों का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हुआ था और लांछन जैसी बातें उन्हें कम सुनने को मिली थी.
“समलैंगिक जोड़ों को गोद लेने की अनुमति देना बच्चों को खतरे में डालना है”
जहां सर्वे की रिपोर्ट लगभग समलैंगिक जोड़ों के पक्ष में बात कर रही है वहीं राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है. समलैंगिक जोड़ों के गोद लेने के अधिकारों का विरोध करते हुए, बाल अधिकार निकाय ने कहा है कि समान लिंग वाले माता-पिता द्वारा गोद लिए गए बच्चों का पारंपरिक लिंग रोल मॉडल के लिए सीमित जोखिम हो सकता है.
याचिका में कहा गया कि, “समान लिंग वाले माता-पिता का पारंपरिक लिंग रोल मॉडल के लिए सीमित जोखिम हो सकता है और इसलिए, बच्चों का जोखिम सीमित होगा और उनके व्यक्तित्व विकास पर असर पड़ेगा.”